पुस्तक़ समीक्षा: पगडण्डी में पहाड़

‘पगडंडी में पहाड़’ जे पी पांडेय द्वारा रचित् एक travelogue है जिसमे मसूरी के आसपास की हिमालय की सुन्दरता का प्रचुर वर्णन किया गया है। पुस्तक में मुख्यता उत्तराखण्ड और हिमांचल प्रदेश के भूभाग के हिमालय में स्थित प्रसिद्द स्थलों के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। पुस्तक का अधिकांश भाग लेखक के Oak Groove School में प्रिंसिपल के कार्यकाल के दौरान की गयी यात्राओं का विवरण है।

कहा जाता है कि यदि लोग अपने जीवन कि सभी घटनाओं का सही सही चित्रण एक किताब मैं कर दें तो दुनिया में अच्छी किताबों की कमी ना रहे। जे पी पांडेय द्वारा लिखी हुई यह किताब इस दिशा में किया गया एक सफल प्रयास है। पुस्तक की शुरूआत “पहाड़ो की रानी मसूरी” नामक अध्याय से होती है और “झड़ीपानी फ़ॉल” से “चारधाम यात्रा” होते हुए “नाग टिब्बा” नामक अध्याय पे ख़त्म होती है। १८ अध्याय की इस किताब मैं विभिन्न स्थानों के ऐतिहासिक, धार्मिक, प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक महत्व का समुचित एवं अनूठा विवरण मिलता है।

इस पुस्तक को पढ़ते हुए पाठक हिमालय की उचाइयों से लेकर भविष्य की कठिनाइयों जैसे Global Warming, एवं land slide, अतीत की कहानियों से लेकर पर्वतीय क्षेत्र में आज हो रहे परिवर्तनों के बारे में परिचित होता है। किताब के प्रथम अध्याय में मसूरी के बसने के आरम्भिक दिनो एवं पुराने bunglow की कहानियाँ पढ़कर एक nostalgic फ़ीलिंग आती है किंतु आज हो रहे परिवर्तनो के वजह से Himalayan ecosystem पर पड़ रहे विपरीत प्रभाओ को पढ़कर चिंता भी होती है। किताब में वर्णित बिभिन्न स्थानो की ट्रेकिंग जैसे ‘झरिपानी फ़ॉल’, ‘परी टिब्बा’ एवं ‘हेमकुंड साहेब और फूलो की घाटी’ का लेखक का अनुभव पढ़कर इन स्थानो को देखने की इच्छा जागृत हो जाती है।

किताब के बड़े हिस्से में मसूरी के आस पास के प्रसिद्ध स्थानो की ट्रेकिंग का वर्णन है। किंतु ट्रेकिंग के साथ साथ लेखक का focus इन स्थानो की जैव विविधता, सांस्कृतिक विरासत और वानस्पतिक विविधता पे भी है। बुरांश( Rhododendrons) के फूलों के महत्व का काफ़ी वर्णन किताब में मिलता है। इसके साथ ही साथ पहाड़ी क्षेत्रों की समस्यों जैसे resources का अत्यंत दोहन, शहरों की तरफ़ पलायन तथा पहाड़ी जीवन की कठिनाइयों का भी बिस्तार से विवरण मिलता है। पुस्तक़ को पढ़कर पाठक ना सिर्फ़ हिमालय की सुंदरता अपितु Himalayan ecosystem के संरक्षण के बारे में भी अवगत होता है।

किताब में लेखक द्वारा किसी भी स्थान की ऐतिहासिकता एवं प्राकृतिक सौंदर्य की चर्चा करते हुए जीवन की कोई philosophy बयाँ कर देना एक अत्यंत ही सुखद एवं अनूठा अनुभव है।उदाहरण स्वरूप अध्याय ११ का एक पैरग्रैफ़ में लेखक लिखता है: ” ट्रेकिंग करते समय प्रारम्भ में सब भले ही साथ चलें लेकिन कुछ ही समय में पूरा ग्रूप कई छोटे छोटे समूहों में बट जाता है। लोगों की अलग अलग गति से चलने के कारण ऐसा होता है। जीवन पथ भी कुछ ऐसा ही है जिसमें कई लोगों और रिश्तों का सफ़र साथ शुरू होता है, लेकिन समय के साथ कुछ पीछे छूट जाते हैं और कुछ नए मिलते जाते हैं। पथ की निरंतरता में ही ख़ूबसूरती है।”

किताब की भाषा अत्यंत ही सहज और सरल है। अधिकांश chapter छोटे हैं जिनको पढ़ने में ज़्यादा समय नहीं लगता। जे पी पांडेय जी की यह किताब हिमालय की खूबसूरत यात्राओं को एक बड़े जनमानस तक पहुचाने में काफ़ी हद तक सफल होगी।

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